Thursday, December 13, 2018

घर के दोमंजिले में एक काठ की अलमारी हुआ करती थी....
जिसे अक्सर बंद देखा करता था.. 
कभी खुलती तो कपूर की खुसबू उससे आया करती.... 
जिसकी मालकिन अम्मा हुआ करती थी.

उसके मंगलसूत्र के बीचो बीच 
एक चाबी नुमा लॉकेट हुआ करता था... 
हाँ उस अलमारी का रिमोट था वो....
कभी फॉरवर्ड तो कभी रिवर्स...
कभी उसके बटन से बताशा निकलता 
तो कभी गुड़ का एक टुकड़ा... 
त्यौहार आता तो पंच  मेवा 
नहीं तो मडुवे की रोटी का एक टुकड़ा.... 

हमारे लिए किसी बैंक के लाकर से कम  न थी वो अलमारी.. 
जिसका पासवर्ड सिर्फ अम्मा के कब्जे में था... 
ना पासवर्ड ना डुप्लीकेट चाभी. 
फिर भी सिक्योरिटी फूलप्रूफ.... 

ना हैरिसन ना चाइनीज़
एक लोहे का ताला अक्सर लटका करता.... 
जो सिर्फ और सिर्फ अम्मा के पासवर्ड से खुलता 

कई बार उसको हैक करने की कोशिश करि.... 
लेकिन सफलता ना मिली... 

मुददतों में कभी खुलती तो 
नाना अपना कांच का गिलास लेकर उसके करीब पहुँचते 
दूसरे खाने के कोने में रखी  एक बोतल निकालते... 
हमें बस बड़े अक्षरों में नेपोलियन  पढ़ने में आता... 

गिलास के एक तिहाई में उस बोतल का द्रव्य उडेल दिया करते थे... 
बातें तो अच्छी करते थे.... 
तब भी उस काठ की अलमारी के पासवर्ड को तरसते थे..... 

अम्मा आर बी आई के गवर्नर से खुद को काम ना आंकती थी 
भले ही उसके नोटों पर साइन ना हों.... 
पर घर की तिजोरी तो उसके ही इशारों पर खुलती थी 
हाँ घर के दोमंजिले में एक काठ की अलमारी हुआ करती थी.... 

Sunday, April 23, 2017

मैं एक औरत हूँ

मैं माँ भी हूँ 
मैं पत्नी भी हूँ 
मैं बहन भी हूँ 
एक दोस्त भी हूँ 
मैं बेटी भी हूँ 
एक देवी भी हूँ 
मैं डरती भी हूँ 
मैं रोती  भी हूँ 
रोज मरती भी हूँ 
रोज जलती भी हूँ 
मैं भविष्य भी हूँ 
मैं नदिया भी हूँ 
एक पुष्प भी  हूँ 
एक वृक्ष भी हूँ 
मैं धरा भी हूँ 
मैं अम्बर भी हूँ 
गर्व भी हूँ 
रोज बिकती भी हूँ 
मैं एक औरत हूँ........ 


Thursday, September 18, 2014

शेखर अपने कमरे में अकेले बैठा कभी कुछ लिखता और फिर पन्ना फाड़ उसकी बॉल बना फर्श पर फेंक देता । उसकी आँखों में किसी आने वाले बवण्डर की परछाई साफ़ नजर आ रही थी।  लेकिन उस परछाई को देखने वाला वहां कोई न था। था तो सिर्फ उसका अकेलापन और हाँ, दीवार पर लटका वो फ्रेम जिसको देख शेखर की ऑंखें बार बार भर आती थीं। क्या था उस फ्रेम में? ?       एक खुशियों से भरा परिवार.......  उसकी पत्नी और दो प्यारी सी जुड़वाँ बेटियाँ जिनमें शेखर की जान बस्ती थी। आज भी जब किसी परिवार में लड़की का जन्म होता है तो अक्सर वहां की खुशियों में कुछ कमी सी महसूस की जा सकती है लेकिन शेखर उन चंद  लोगों में से था जो लकड़ा या लकड़ी में कोई अंतर नहीं समझते। तभी तो अपनी बेटियों के जन्म का जश्न "सपना" में कई दिनों तक मनाया । "सपना"  शेखर और उसकी पत्नी निशि के सपनो के घर का नाम था जिसकी दीवारें शेखर को आज  ऐसे देख रही थीं मनो वो उससे उसकी परेशानी का सबब जानना चाह रही हों। हो भी क्यों न, आज तक शेखर की परछाई ने भी उससे इतना दुखी और टूटा हुआ नहीं देखा था। जिस घर में शेखर के ठहाके गूंजा करते थे आज वहां एक अजीब सा उन्माद छाया हुआ था।
तभी  मोबाइल की घंटी बजी........ शेखर ने फ़ोन की तरफ देखा और फिर उससे आँखें चुरा लीं। कुछ पल बीते ही थे की घंटी फिर घंगनाने लगी और ना चाहते हुए भी शेखर ने फ़ोन उठा लिया, धीमी आवाज में शेखर बोला, "हेलो". "अबे फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा है" दूसरी ओर से आवाज आई। शेखर बोला, "नहीं बस घंटी सुनाई नहीं दी अमित, कैसा है "? " अबे मैं तो ठीक हूँ पर तू बता इतना दुखी क्यों साउंड कर रहा है". " नहीं यार मैं तो बिलकुल नार्मल हूँ" . "साले  अब दोस्तों से छिपायेगा" अमित बोला। शायद हम भूल कर जातें हैं की दोस्तों से कुछ छुपता नहीं हैं, वो तो सूंघ लेते हैं और अमित ने भी सूंघ लिया था की शेखर परेशान है। लेकिन शेखर ने अपनी परेशनियों पर पर्दा डालते हुए अमित को कन्विंस कर दिया की वो परेशान नहीं है।
अमित का फ़ोन कटते ही शेखर फूट फूट कर रोने लगा लेकिन उसके आंसू पोछने वाला वहां कोई न था। कुछ क्ष्रण बीतने के बाद शेखर ने कलम उठाई और लिखना शुरू कर दिया मानो  उसे वो सब याद आ गया हो जो वो लिखना चाह रहा हो।
शेखर ने लिखना शुरू किया, "ख़ुशी मिली मुझे माफ़ कर देना बच्चो मैं दूर  बहुत दूर जा रहा हूँ, शायद आज तुम्हे मेरा तुम से दूर जाना ज्यादा  कष्ट नहीं देगा लेकिन कुछ समय बाद तुम्हे मेरी कमी खलने  लगेगी। मैं जिंदगी से  परेशान हो चुका  हूँ।  तुम्हे और तुम्हारी माँ को छोड़ कर जाना मेरे लिए बहुत कष्टदायी है लेकिन मैं मजबूर हूँ और कोई रास्ता भी नहीं है मेरे बच्चो।  मैं तारा बन तुम्हे हर रोज़ देखा करूँगा बेटा और जब कभी तुम किसी परेशानी में हो तो आसमान में मुझे देख आवाज लगाना, तुम्हारे पापा तुम्हारे पास आ जायेंगे। अपनी मम्मी का ख्याल रखना और माँ को बहुत प्यार  करना क्यूंकि मेरे जाने के बाद तुम्हारी माँ सबसे ज्यादा अकेली हो जाएगी बच्चे।  मैं जानता हूँ मैं गलत कर रहा हूँ लेकिन और कोई रास्ता भी नहीं है। मुझे दुःख है कि मेरा कष्ट मेरे माँ बाप नहीं समझ पायेऔर मैं कभी नहीं चाहूंगा कि तुम्हारी माँ भी ऐसा ही करे। तुम्हारी परेशानियों को तुमसे पहले तुम्हारी आँखों में पड़ ले। तुम दोनों माँ को बहुत प्यार करना और अपने साथ ही सुलाना।  माँ को कहानियां सुनाना और माँ से हमारी कहानियां सुनना कि कैसे हम मिले और कैसे हमारी शादी हुई। हह!! सब कुछ कितना हसीं था लेकिन अब सब ख़त्म होने जा रहा है सब कुछ........
इस बात का दुःख जरूर होगा कि मैं तुम्हारी छोटी छोटी हथेलियों को आखरी बार छू भी नहीं पाया और न ही तुम्हारी माँ को जाने से पहले गले लगा सका" . ……
इतना लिख कर शेखर ने एक सिगरेट जलायी और जोर का कस लिया… ये उसके लिए कुछ नया था क्यूंकि उसने कभी धूम्रपान किया नहीं था।
तभी शेखर ने घर में बने पूजाघर की ऒर देखा और फूट फूट कर रोने लगा, शिकायत करने लगा कि उसका क्या कसूर है जो उसे यह कदम उठाना पड़ रहा है। शेखर की मनोस्तिथि देख लगता था मनो वह मौत  से ज्यादा जीना चाहता है। लेकिन तभी शेखर अपना सबसे प्यारा "सपना" छोड़ पास पड़ी एक शीशी की ओर लपकता है मानो उसने अपने प्राण त्यागने का  प्रण कर लिया हो.……
शेखर ने शीशी खोली और इस से पहले वह उसको अपने गले से नीचे उतारता फिर से उस का फ़ोन घनघनाने लगा। एक आखिरी बार शायद वह फ़ोन उठाना चाहता था और फ़ोन उठाते ही वह फफक फफक कर रोने  लगा, फ़ोन के दूसरी तरफ उसका दिल उससे बात कर रहा था, "पापा कब आ रहे हो आप " तोतलाती आवाज में शेखर की बड़ी बेटी बोली। हालाँकि छोटी और बड़ी बेटी  सिर्फ ४ मिनट का ही अंतर था। ख़ुशी की आवाज सुन शेखर निशब्द हो गया और भर्रायी आवाज में बोला "मिली कहाँ है बेटा मेरी बात कराओ " . तभी मिली बोली "पापा आप नहीं आओगे तो मैं खाना नहीं खाऊँगी, आप जल्दी से आओ"।  अब शेखर के लिए अपनी जान देना और भी मुश्किल हो गया। भरे मन से फिर एक कोशिश की लेकिन तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। बहार देखा तो अमित खड़ा था। शेखर ने तपाक से केवाड़ खोला और अमित के भीतर आने से पहले ही उसे गले से लगा लिया और फूट फूट कर रोने लगा।  अमित बोला, "मैं जानता था कि तू बहुत परेशान है और रहा नहीं गया इसीलिए तेरे से मिलने आ गया" . शेखर बोला , "मैं मरने जा रहा हूँ दोस्त लेकिन  बड़ा मुश्किल है खुद को ख़त्म करना जब तुम्हारे करीब इतने खूबसूरत लोग हों। मैं क्या करूँ अमित?"
अमित शेखर को दरवाजे तक ले जाता है और बहार शेखर की ज़िन्दगी उसका इंतज़ार कर रही होती हैं निशि , ख़ुशी और खिली। सभी की ऑंखें नम हो जाती  हैं.… शेखर और निशि एक दूसरे को गले लगा रोने लगते हैं, कुछ क्षण सब कुछ थम सा जाता है और फिर निशि अमित को , जिसे वो हमेशा गलत समझती रही, गले लगा कर माफ़ी मांगती है और अपनी कृतज्ञता जाहिर करती है।
शेखर  बच्चियों को गोद  में उठा नम आँखों से उन्हें अपने सीने से लगा लेता है मानो अनकहे शब्दों से उनसे माफ़ी मांग रहा हो और कहना चाह रहा हो कि वो कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था।
आज शेखर एक स्कूल चलाता है और अपने बच्चों को जिंदगी की खूबसूरती का पाठ पढ़ाता है और हाँ अपना वो उदाहरण देना नहीं भूलता कि जिंदगी के आगे भी एक ज़िन्दगी है…

Monday, August 4, 2014

मेरा दिल.....

तुम आई तो जीवन मिल गया 
तुम मुस्कुराई तो दिल खिल गया 
तुमने देखा तो धड़कन  बढ़ गई 
तुमने छुआ तो स्वर्ग मिल गया 
तुम न होती तो जीवन अधूरा था 
तुम हो तो सब कुछ है…… 



Thursday, July 31, 2014

जीने का जी करता है....

आज फिर उड़ने का जी करता है
आज फिर मुस्कुराने का जी करता है
आज फिर से वो लम्हे याद करने का जी करता है
आज बारिश में भीग जाने का जी करता है
आज कागज की कश्ती बनाने का जी करता है
आज चवन्नी की ढैया उड़ाने का जी करता है
आज चोर पुलिस और डॉक्टर डॉक्टर खेलने का जी करता है
आज फिर बगिया में आम गिराने का जी करता है
आज फिर से बच्चा बन जाने का जी करता है
हाँ, आज फिर से जीने का जी करता है....



Tuesday, November 19, 2013

"टीनएज"

हमारी जिंदगी का  सबसे महत्वपूर्ण समय होता है टीनएज।  ये ऐसा समय होता है जब हमारे भीतर तमाम शारीरिक एवं मानसिक  बदलाव आते हैं।  बलवस्था और युवावस्था के बीच का यही  समय होता है जब हम भविष्य के निर्माण कि नीव रखते हैं। अगर नीव थोड़ी सी भी कमजोर पड़ी तो सारा जीवन लक्ष्यहीन हो जाता है।  सभी माँ बाप बच्चों की इस जीवनकाल के  दौरान डरे सहमे रहते हैं। उन्हें दिन रात उनके भविष्य चिंतन का डर लगा रहता है।
यही समय होता है जब ये बच्चे अपना घर छोड़ अपने अपने शहरों से दूर अपने भविष्य निर्माण के लिए निकल पड़ते हैं। कुछ तो अपना जीवन लक्ष्य प्राप्त करके ही लौटते हैं और कुछ दुर्भाग्यवस कामयाबी के मुहाने तक पहुँच कर लौट आते हैं। और उन्हीं बच्चों में से कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपना लक्ष्य शहरों कि गलियों में कहीं खो आते हैं। उन्हें शहरों की  चकाचौंध अँधा कर देती है। वो अपने सपनो की उड़ान तो भरते हैं लेकिन  हवा का एक  तेज झोंका उन्हें उनके सपनो सहित कहीं दूर अंधकार में धकेल देता है। 
कारण एक नहीं अनेक होते हैं, कभी माँ बाप जिम्मेदार होते हैं तो कभी बच्चे और कभी हालात।  लेकिन अकसर हम हालातों को कोसते हैं जो ठीक नहीं क्यूंकि हालातों को हमारी मानसिकता ही उपजाति है। 
बालकों में नशा किसी संक्रामक रोग की तरह फ़ैल रहा है।  पब, क्लब और  दोस्तों के साथ पार्टियां करना एक स्टाइल बन चुका है और यही वो  जगह हैं जो बच्चों के जीवन में नशे का ग्रहण लगा रही हैं। बच्चे देर से घर लौटते हैं लेकिन कुछ माँ बाप ऐसे होते हैं जो उनसे ये पूछने कि हिम्मत नहीं कर पाते की वो इतनी  रात कहाँ से आ रहे हैं। वो बच्चे जो ज्यादा पैसा खर्च नहीं कर पा रहे वो आसानी से नशे कि गोलियां, कफ सिरप, थिनर, और ना जाने क्या क्या चीजों का इस्तेमाल कर खुद को नशे के दलदल में कैद करते जा रहे हैं। कई बार इन नशीले पदार्थों के सेवन के लिए धन न होने कि दशा में कोई  भी गैर कानूनी कृत्य करने से भी नहीं चूकते। 
बालिकाओं में भी नशा हावी होता जा रहा है, और नशा नशीले पदार्थों का ही नहीं बल्कि मेहेंगे शौक पूरे करने का भी। और ये ऐसा नशा है जिसे पूरा करने के लिए ये किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने से भी नहीं चूकतीं। 
इन बच्चों को जरूरत है प्यार की सम्मान की और हम सब की  देखरेख की। हमें जरूरत है इन्हे समझने की और समझने की। ऐसा नहीं है कि ये सब रोका नहीं जा सकता, ग़र मिलके कोशिश करें तो शायद जरूर। इन बच्चों कि जिंदगियों का हम आयना हैं, जो कुछ ये हममें देखेंगे खुद को भी वैसा ही पाएंगे। 
आज फिर दिल से कुछ निकल बैठा है.………

Saturday, November 16, 2013

भगवन या फिर इंसान?.....

मैं सचिन का न तो बहुत बड़ा प्रसंशक हूँ न ही कोई आलोचक।  लेकिन आज सचिन को भारत रत्न दिए जाने  से बहुत ही आहत हूँ।  इन्सानी  भगवान  को एक आम इंसान से ऊपर उठा दिया आम  इंसानो ने…  पिछले लगभग एक महीने से किसी भी दैनिक पत्र में सचिन के अलावा और किसी खिलाडी की  कोई और खबर नहीं थी।  और तो और रोहित शर्मा की अपने पदार्पण टेस्ट मैच के  दोनों  शतक भी फीके कर दिए मीडिया ने।  और दूसरा शतक तो ऐसे समय में लगाया  कि एकदम नामुमकिन सा दिख रहा था।
खैर, सचिन बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं और ताउम्र रहेंगे लेकिन क्या  उन्हें भगवान  की  संज्ञा देना ठीक रहेगा?
क्या ये सब मीडिया का कमाल है ? इस सब के पीछे पीछे क्या एक   सिस्टम काम नहीं करता है? वो एक महान खिलाड़ी  हैं लेकिन महानतम नहीं।  क्या सर डॉन ब्रैडमैन किसी मायने में सचिन से कम हैं? क्या राहुल द्रविड़ उनके मुकाबले कहीं खड़े नहीं होते हैं? क्या आनंद विस्वनाथन और मिल्खा साब भी उनके मुकाबले कुछ नहीं ?
और अंत में मैं उस शख्श का जिक्र करना चाहूंगा जिसने भारत को ओलिंपिक खेलों में एक दो नहीं बल्कि तीन तीन स्वर्ण पदक दिलवाए।  जी हाँ नाम लेना चाहता हूँ ध्यान चंद साहब का।  तीन बार खेलों के महाकुंभ में ३३ गोल करने वाले खिलाडी को हम सब भूल गए। हॉकी के जादूगर, जिनके जन्मदिवस  पर भारत देश में २९ अगस्त को प्रति वर्ष खेल दिवस मनाया जाता है आज उन्ही को भारत रत्न से वंचित किया गया। मेरी समझ में ये उस महान खिलाडी का बहुत बड़ा अपमान है। ये क्रिकेट का कमाल है ये बी सी सी आई का कामल है ये राजनीति का कमाल है और ये मीडिया का कमाल है।  लेकिन इस सब के पीछे ये सचिन के करिश्मे का कमाल है।  उनकी मेहनत और हुनर का कमाल है।
आज की तारीख में मीडिया कुछ भी कर सकता है, जीरो या फिर  हीरो……