Saturday, May 7, 2011

"माँ"......

मदर्स डे की पूर्व संध्या पर सभी माओं को मेरी शुभकामनायें........... "माँ" कहावत है जहाँ ईएश्वर मदद के लिए नहीं पहुँच पाते वहां माँ साथ होती हैहमारी दुनिया में माँ का दर्जा ईएश्वर से कम नहींहो भी क्यूँ नहीं माँ होती ही ऐसी हैखुद भूखा रह कर भी हमें खिलाती है माँहमारे दर्द अपना लेती है माँतपती धूप में भी छावं देती है माँप्यार का सागर है माँमाँ ममता की देवी हैलगती है चोट हमें तो कराह उठती है माँमाँ होती है तो मकान घर बन जाता हैनहीं, तो महल भी खँडहर में बदल जाते हैंबच्चे कैसे भी हों हमेशा प्यार करती है माँहमारी ख़ुशी में खुश होती है माँ और हमारे दुखों में ढाल बन जाती है माँ
आईये हम सब अपनी माँ के साथ बिताया हुआ समय याद करें और अपने अपने स्मरण लिखें...............

Wednesday, May 4, 2011

अनजाना.....

अमरीका से जब प्रखर अपने देश के लिए निकला था तो बहुत खुश था। हो भी क्यूँ ना, कितने लम्बे अरसे के बाद पढाई से छुट्टी मिली थी। प्रखर लम्बे कद और काफी आकर्षित व्यक्तित्व वाला नौजवान था। अपने माँ बाप का लाडला और बहन का दुलारा। दिल्ली पहुँच के उसने अपनी माँ को फ़ोन कर बताया कि वो भारत पहुच चूका है और कुछ ही घंटों में अपनी माँ के पास पहुँच रहा है। लेकिन प्रखर के पिता चाहते थे कि वह पश्चिम के रास्ते उत्तराखंड राज्य की संस्कृति और रीती रिवाजों को जानते हुए घर वापस लौटे। १७ अप्रैल को प्रखर उत्तराखंड राज्य के सबसे सुन्दर नगर, नैनीताल पहुँच गया और अपना सामान नगर के ही एक होटल में रख नैनिताल की वादियों में घुमने निकल पड़ा। १८ तारीख को उसने दिन में लगभग बारह बजे अपने घर फोन किया और बताया कि वो नैनीताल में रह रहा है और कुछ दिन कुमाउन की संस्कृति से रूबरू होकर अपने वतन वापस लौट आएगा।
उस दिन के बाद से वो न तो अपने होटल ही लौटा ना उसका कोई संपर्क अपने घरवालों से हुआ। २१ तारीख को प्रखर के घरवाले उसकी खोजबीन करने काठमांडू से नैनीताल पहुंचे और उसकी खोज में नैनीताल और आसपास का चप्पा चप्पा छान मारा लेकिन हताशा ही हाथ लगी..............
आज सवेरे मैं दफ्तर पहुंचा ही था कि कुछ देर में खबर आई कि चाइना पीक के नीचे पहाड़ी में किसी कि लाश देखि गयी है। मैं अपने कुछ मित्रों के साथ कोतवाली पहुँच गया, वहां पहुँच के पता चला कि जो लाश मिली थी उसकी शिनाख्त प्रखर पोखरेल के रूप में उसके माँ बाप द्वारा कर ली गयी है। अन्दर देखा एक महिला फूट फूट के रो रही थी और कुछ लोग उसे चुप करने कि कोशिश कर रहे थे। वहां का माहौल देख मेरी भी आँखें भर आयीं थीं। एक माँ के लिए इस से बड़ी पीड़ा और क्या हो सकती है कि जिस बच्चे को २५ वर्षों तक अपने कलेजे से लगा के रखा हो वो ही न रहा...... न जाने कितने सपने सजोये होंगे............ कितनी आस लगायी होंगी........... सब कुछ एक चुटकी में समाप्त हो गया था। हम कितनी ही दिलाशा क्यूँ न दे दें लेकिन जिस पे गुजरती है वो ही अपने दर्द को पहचानता है। उसके पिता और दो चचेरे भाई जो साथ में थे, से हमने बातें करना शुरू किया और उन्हें दिलशा दी कि वो खुद को परदेश में रहकर भी खुद को अकेला न समझें। जब तक कोतवाली की कागजी कार्यवाही चल रही थी हम में से दो लोग नयना देवी मंदिर गए और एक पंडित जी से अंतिम क्रिया संपन्न कराने की बात कर के आ गए साथ ही अर्थी का सामान भी लेते आये। में और मेरा एक मित्र कुछ और लोगों को जुटाने चल पड़े। तक़रीबन तीन बजे हम आठ लोग चार पोलिसे कर्मियों के साथ घाट को चल पड़े। पिंस पहुच कर जब पुलिस अमबुलंस का दरवाजा खुला तो चालक बोला आप लोग बॉडी को बहार निकालिए। में और गोलुदा उसके करीब पहुंचे तो देख के भौंचक्के रह गए क्यूंकि वो ६ फूट ३ इंच का नौजवान अब मात्र तीन चार किलो का ही रह गया था। इतने दिनों में चील कव्वे और जंगली जानवर उसकी बोटी बोटी नोच के खा चुके थे। मैं और गोलुदा उसके शव को अपने हाथों में लेकर नीचे घाट की तरफ चल पड़े। नीचे पहुँच शव की पोटली एक किनारे रख चिता लगाने में लग गए. चिता लगा दी गयी अब पंडित जी ने मन्त्र पड़ने शुरू किये, लेकिन पंडितजी को देख हम सभी को खूब जलालत का सामना करना पड़ा। न पूछिए क्यूँ? पंडित जी तो पहले से ही शोमरस क नशे में धुत्त थे। जैसे तैसे अंतिम रश्में पूरी की गयीं। प्रखर के पिता ने अपने लाल को मुखाग्नि दी। प्रखर की माँ भी अपने कलेजे के टुकड़े को अंतिम विदाई देने घाट में अंतिम आंच तक खड़ी रहीं। जब मैंने प्रखर क शव को प्लास्टिक शीत से बहार निकला तो मेरा माथा सन्न हो गया। उसका शरीर कंकाल के सिवा कुछ भी न था। ऐसा विभत्स रूप मैंने कभी नहीं देखा था। एक घंटे से भी कम समय में वह हड्डियों का ढांचा मिटटी में मिल गया। अन्त्त में एक हांड़ी में कुछ अस्थियाँ डाल के उन्हें सौंप दी गयीं। उसके बाद सभी ने नाम आँखों से पोखरेल परिवार को विदा किया इसी कामना क साथ की ईएश्वर उनके पुत्र की आत्मा को शांति प्रदान करे।
हे प्रभु ऐसा कस्ट किसी भी माँ बाप को न दें। सन्तान न दे लेकिन देने क बाद ऐसे न छीने। अपना आशीर्वाद हमेशा बनाये रख्येगा प्रभु......................

Tuesday, May 3, 2011

करबो................................... लड़बो......................................जीतबो...................................

लादेन मारा गया!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! कितना सच कितना झूठ.......................

लादेन मारा गया, अच्छा है लेकिन ये मार काट ये खून खराबा....... इस सब से हासिल क्या होगा? क्या किसी वर्चस्व की लड़ाई है ये? पानी की तरह पैसा बहाया जाता है किसी और का खून बहाने के लिए........... कितना अच्छा होता अगर हम सब एक परिवार की तरह रहते.............. मैं अगर जादूगर होता तो साडी दुनिया के लोगों के जहन से क्रोध, कडवाहट और इर्षा को ख़त्म कर देता , ये जहां कितना सुन्दर हो जाता.............. कहीं पर भी कोई वार्तालाप चल रहा होता तो उसमे सिर्फ मुस्कान, प्यार, दया और मधुरता दिखाई देती। लेकिन ये सिर्फ ख्यालों में ही हो सकता है, हकीकत कुछ और ही बयां करती है......................
अमरीका ने जो बीज वर्षों पहले बोये थे आज वो काँटों भरे पेड़ पूरी दुनिया में अपने काटें बिखेर रहे हैं। मुझे ज्यादा ज्ञान नहीं है लेकिन मैंने सुना है रूस के खिलाफ अमरीका ने ही अफगानिस्तान के सीधे साधे गाँव वालों को हथियारों का प्रशिक्सन दिया और रुसी फौजों के खिलाफ उनको खड़ा कर दिया............ स्कूल जाने की उम्र में बच्चों के हाथों में अश्लाहा बारूद और धर्म की मार पड़ गई। शाक्षर ना होने के कारण वहां के लोगों को प्रगति के बजाय युद्ध के मैदान में धकेल दिया गया..........................
आतंकवाद का अंत हो पाना बेहद मुश्किल बात है। सिर्फ हमारी एकता और हिम्मत ही आतंकवाद का सामना कर सकती है............. और एकता के लिए हमें नेता और उनकी नीति से काफी ऊँचा उठ कर लडाई लड़नी होगी..............

करबो................................... लड़बो......................................जीतबो...................................