आज सुबह सुबह मेरी आखें भर आई........... अचानक वो दिन याद आ गए जब बाबूजी को किसी झूठे केस में फसा के नौकरी से निलंबित कर दिया गया था........... मैं तो बहुत छोटा था उस वक़्त लेकिन कुछ धुंदली सी यादें हैं जो मैं कभी नहीं भुला सकता ........ साठ रुपया सैंट जोसेफ की फीस हुआ करती थी भाई की, महीनों तक नहीं दे पते थे............. बाबूजी चैन स्मोकर थे, अभी भी पीते हैं लेकिन हम से छिप के......... मुझे याद है कई बार एक बीडी (चूँकि सिगरेट नहीं खरीद सकते थे) का बण्डल लेने के लिए भी हमारे मिटटी के गुल्लख से चार आने या आठ आने निकलने की कोशिश करते थे.............
बाबूजी कपूर लौज वाले बाबाजी के बहुत बड़े भक्त थे......... मुझे याद है उनके लिए जंगलों से सलाम पंजे की जड़े खोद के लाते थे बाबूजी............. छोटी सी परेशानी हम पे आती है तो हुम सेहन नहीं कर पते हैं लेकिन बाबूजी ने जो परेशानियां अपने उस दौर में झेलीं उसका कभी एहसास तक, हमें होने न दिया............... वो सच्चे थे और जीत उन्ही की हुई.......... फिर से सब कुछ अच्छा होने लगा।
अपने पुरे जीवन में बाबूजी ने जो कुछ भी कमाया हम बच्चों पर लगा दिया............ बाबूजी हमारे पिता कम और मित्र ज्यादा हैं........... मैं ईश्वर से हमेशा प्रार्थना करता हूँ कि मुझे जितने भी जनम मिले किसी भी रूप में मिले, मेरे पिता बाबूजी ही रहें....................
हमें बाबूजी से बहुत कुछ मिला है और वो ही हम अपने बच्चों दो दे रहे हैं............ और शायद वो अपने बच्चों को दें.............
Harish ,u do write dil se.Thats the first blog post of yours that i read, and now i'm a follower .keep it up.
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