नमस्कार................... आज काफी समय के बाद "दिल से" कुछ लिख रहा हूँ। मैंने सुना है महत्वकांशी होना बुरी बात नहीं है, हाँ अति महत्वकांशी होना ठीक नहीं........ मैं भी इसी दौड़ में शामिल हूँ । हाँ मैं महत्वकांशी हूँ............. कई बार लगता है कि क्या मै सही कर रहा हूँ? क्या अपनी महत्वकान्शाओं को पूरा करने के लिए जी हजूरी करना जरूरी है? चापलूसी करना ............... बेवजह तारीफ करना............ शोशे बाजी करना ............... हवा बनाना ......... या फिर सिर्फ मेहनत के बलबूते पर आगे बढना???????????????
मुझे लगता है सिर्फ किताबी बातों से ही आगे नहीं बड़ा जा सकता है। शायद हर कदम पे दिल और दिमाग को चुस्त रखने कि जरूरत है। अपनी बातों में अपनी सोच में एक लचीलापन लाना होगा............. ये लचीलापन अगर न हो तो जिंदगी नटवरलाल कि तरह हो जाएगी.............
क्या अपनी महत्वकंसाओं को पूरा करने में अगर किसी की जी हजूरी या चापलूसी करनी पड़ी तो
कुछ गलत है? हाँ हमारे व्यहार से किसी को कष्ट न पहुंचे ना हि हम किसी के लिए बुरा सोचें........ अगर आप का बॉस आपको दो दुनी पांच बता रहा हो, तो मै समझता हूँ उसे मानने में कोई हर्ज़ नहीं है अगर किसी का नुक्सान न हो रहा हो तो...............
इन सब के बीच अपने दिल को जरूर खुला रखें ताकि आप से कोई गलती न हो जाये..................... दिमाग गलत सोच सकता है ........... लेकिन........... दिल गलत नहीं कर सकता है............ तो अपनी महत्वाकान्साओं को पूरा करने के लिए सोचें "दिल से"...............
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