शेखर मुझे लगता है मैं फिर से माँ बनने वाली हूँ................. मनु की बात सुन शेखर स्तभ्द सा रह गया। कुछ क्षण सोचने के बाद वह बोला, "तुम मजाक तो नहीं कर रही हो ना" ????? नहीं, आई ऍम नौट जोकिंग...... क्या हम इसके लिए तैयार हैं? ये सवाल शेखर के दिमाग में कौंध रहा था। जब शेखर और मनु का बेटा दो साल था तब वो अक्सर सोचते थे कि जब भी वे दोनों दूसरे बच्चे को पालने लायक हो जायेंगे तो कोशिश करेंगे कि एक बच्ची को गोद लेंगे। शायद येही वजह थी जो शेखर को सोचने पर मजबूर कर रही थी। "क्या मैं अबोर्सन करा लूं"?, मनु ने कहा .............. नहीं कभी नहीं शायद यही ईएश्वर की मर्जी है, कहकर शेखर मनु की ओर बड़ा और मनु को गले से लगा लिया।
दिन बीतने लगे, घर में सभी को नए मेहमान के आने का इंतज़ार था। सभी काफी खुश थे और होते भी क्यूँ नहीं, बच्चों और बूढों के आने पर हर कोई खुश होता है........... आखिर वो दिन आ ही गया.......... मनु को सोनपुर के जिला चिकित्सालय में भारती करा दिया गया। एक रात रुकने के बाद मनु को आप्रेसन के लिए तैयार किया गया, शेखर के दो मित्र जिनका खून मनु के खून से मिलता था वहां पहुच चुके थे............... आप्रेसन शुरू हुआ और बाहर शेखर अपने मित्रों तथा परिजनों के साथ खड़ा ईएश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि उसे एक प्यारी सी बिटिया मिले.............. शेखर और बीरू में शर्त भी लग गयी कि बेटी होगी तो स्पेशल पार्टी होगी.............. तभी नर्स बाहर आई और हस्ते हुए बोली ,"बधाई बेटा हुआ है",.............. ओऊ.......... क्या प्रभु फिर बेटा दे दिया............ कहते हुए शेखर ने अपने मित्र को गले लगाया, फिर अपने बड़े भाई को गले लगाया............... कुछ देर बाद मनु और नया मेहमान सल्य चिकित्सा कक्ष से बाहर आये............ छोटू तो पैदा होते ही आँखें खोल के सब को टुकुर टुकुर देखने लगा। मनु और शेखर बहुत खुश नज़र आ रहे थे......... कभी उसका नाम सोचते तो कभी उसे प्यार करते....... अब वो दो नहीं तीन नहीं चार हो गए थे। रात को मनु के साथ शेखर और उनका एक मित्र साथ में रुका करता था । खूब हसी मजाक चलती नए नए नाम सोचे जाते और बड़े बड़े सपने देखे जाते........
चौथे दिन सुबह से ही बच्चे को थोड़ी परेशानी सी महसूस हो रही थी तो शेखर छोटू को लेकर डाक्टर साब के पास ले गया लेकिन डाक्टर साब ने सब कुछ नॉरमल बताके वापस भेज दिया। जैसे जैसे दिन गुजरता गया नए मेहमान कि हालत और बिगडती गयी, लेकिन डाक्टर साब तब भी सब कुछ हलके में ही ले रहे थे। जब बात हद से गुजर गयी तो शेखर बच्चे को लेकर अपनी माँ भाई और दो मित्रों के साथ सोनपुर से चालीस किलोमीटर दूर बड़े शहर को रवाना हो गया। शेखर बार बार अपने बच्चे को देखता और ईएश्वर से प्रार्थना करता जा रहा था। कुछ दूर पहुँचने के बाद अचानक शेखर की माँ बोली ,"बच्चे के हाथ पैर इतने ठन्डे हो गए हैं, मुझे लगता है इसमें कुछ नहीं बचा है" लेकिन शेखर कुछ मानने को तैयार ही नही था............. शहर पहुच के बड़े अस्पताल में बच्चे को दिखाया गया........... वहां के डाक्टरों ने काफी कोशिश की बचाने की लेकिन बचा नहीं पाए............. अब शेखर हार चूका था, उसका गला भर आया और वो अपने मृत बच्चे को गले से लगाये फूट फूट के रोने लगा............ लेकिन नए मेहमान का साथ तो उनकी जिंदगी में सिर्फ नौ महीने चार दिन का ही लिखा था।
वो सब वापस सोनपुर के लिए रवाना हो गए और मनु को नए मेहमान का आखरी दीदार करा के उस तृप्त आत्मा को अलविदा किया। मनु और शेखर को अस्पताल का वो कमरा बार बार नए मेहमान की याद दिला रहा था, दोनों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे........... फर्क सिर्फ इतना था मनु के आंसू सबको दिख रहे थे और शेखर के नहीं................. आँखों में नीद तो थी नहीं बस रात भर मस्तिस्क इधर उधर डोल रहा था। शेखर अपनी सोच में ईएश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि काश उन्हें कोई ऐसा गरीब परिवार मिल जाये जिन्हें जुड़वाँ बच्चियां हुई हों और वो एक बच्ची उन्हें गोद दे दें।
समय बीतता गया और मनु को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। घर आई लेकिन घर घर सा नहीं रहा............. दिन रात उदासी और आंसू बस यही रह गया था।
दो हफ्ते गुजरने के बाद शेखर मनु को पट्टियां बदलने के लिए शहर के अस्पताल ले गाया । जब मनु की पट्टियां बदली जा रही थी तभी दो महिलाएं आपस में किसी बच्चे को गोद लेने की बात कर रही थीं। मनु से नहीं रहा गया और उसने उन महिलाओं से साड़ी जानकारी ली और अगले ही दिन शेखर और मनु बताये हुए पते में चले गए........... एक गरीब लेकिन इमानदार परिवार। और परिवार में एक बूढी माँ, बेटा बहु , एक पोता और दो प्यारी सी नन्ही सी पोतियाँ.............. शेखर हिचकिचाते हुए बोला, " हमने सुना है आप अपनी जुड़वाँ बेटियों में से एक को गोद देना छह रहे हैं"? सुनकर परिवार वाले भी सकपकाए लेकिन फिर अन्दर बैठा पानी पिलाया और शेखर मनु के घर तथा घर वालों के बारे में पूछने लगे। वो गरीब जरूर थे लेकिन अपनी बच्ची को किसी के भी हाथों में नहीं देना चाहते थे, वे चाहते थे की उनकी बच्ची एक अच्छे परिवार में जाये................ कुछ दिनों के बाद बात करने को कह के मनु और शेखर वहां से वापस हो लिए।
अब एक और इंतज़ार शुरू हो गया था, कई सवाल इन्हें हर वक़्त घेरे रहते थे। एक उम्मीद सी जगी थी जिसने मनु और शेखर को वापस उत्साहित कर रखा था.....
कुछ दिन इसी उत्साह में बीत गए, और फिर एक सुबह फ़ोन की घंटी बजी और उधर से सिर्फ इतनी आवाज़ आई , "नमस्कार आप कल आके बच्ची को ले जाना" । ये सब्द सुनते ही शेखर के हाथों से फोन गिर गया और ऑंखें नम हो गयीं............... कुछ पल के सन्नाटे बे बाद शेखर चिल्लाया, " कल हमारी बेटी आ रही है"। सब लोग ख़ुशी से झूम उठे और मनु तो मनो गगन में उड़ रही हो..............
अगले ही दिन मनु शेखर और माँ अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा वरदान लेने जा रहे थे............ वहां पहुंचके मनु ने बच्ची को अपने सीने से लगा लिया, शेखर के फ़ोन में बार बार घंटी बज रही थी, घर पे सारे लोग इंतज़ार कर रहे थे कि कब बच्ची घर आये...............
और वो क्षण आ ही गया शेखर, मनु और बिटिया...........................
शेखर और मनु के लिए वो सिर्फ बेटी ही नहीं साक्षात् माँ दुर्गा का रूप था.............
आज लगभग ६ वर्ष बाद भी शेखर और मनु के जीवन में वो "नया मेहमान" अलविदा कह के भी साथ बना हुआ है....................
छू लिया.
ReplyDeletedil ko choo liya.. Shekhar tumharey ansoo mein ne bhi mehsoos kiye
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