Wednesday, April 20, 2011
२१ अप्रैल २००१ की सुबह अनु को कुछ परेशानी सी महसूस होने लगी................. हम अनु को लेकर श्री राम हॉस्पिटल पहुँच गए। वहां डॉ क्रिष्णा साह ने उसे देखते ही भर्ती करने के लिए कह दिया। सारा दिन अस्पताल और उसके इर्द गिर्द ही बीता............. रात आठ बजे के करीब डाक्टर साब ने बोला ऑपरेशन करना पड़ेगा क्यूंकि बच्चे की पल्स हलकी हो रही है। हमारे पास कोई चारा नहीं था और जहाँ जहाँ मुझसे हस्ताक्षर करवाने थे करवा लिए.......... अनु भी डरी हुई थी , सब घबरा रहे थे। मैं मन ही मन गायत्री का जाप कर रहा था और फिर मैंने अनु को महाराजजी का स्मरण कराया और पल भर में कुछ वार्ड बॉय उसे सल्य चिकित्सा कक्ष में ले गए.............. मैं पापा बनने जा रहा था। भीतर ऑपरेशन चल रहा था और बाहर सभी के मस्तिष्क में अलग अलग बातिएँ कौंध रही थी। सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता था........... शायद ईजा ईएश्वर से प्रार्थना कर रही होगी, "हे प्रभु मुझे एक पोता दे दो" , हमारी एक रिश्तेदार साथ में बैठी थी और शायद वोह सोच रही होंगी कि प्रभु इनके घर कन्या को ही जन्म देना...........बेटा मत देना.............. शायद बाबूजी भी सोच रहे हों कि पोता आये, और वो अपनी बहु के लिए निरंतर ईएश्वर से दुआएं मांग रहे होंगे............... सबकी अपनी अपनी सोच लेकिन मैं इन सब चीजों से बेखबर गायत्री का जाप करने में लगा हुआ था............... मैं ईएश्वर से येही दुआ मांग रहा था कि मेरी पत्नी और जिस बच्चे को वह जन्म दे दोनों स्वस्थ हों................ मेरे दिल कि सुन्येगा तो मैं चाह रहा था कि एक प्यारी सी बिटिया जन्म ले और उसका नाम हम हर्शिनी रखें। अनु भी यही चाहती थी............... मैं इधर से उधर चलने में लगा था और जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था धड़कने और तेज़ होती जा रही थीं...........
तभी सन्नाटे को चीरती हुई एक नवजात बच्चे की रोने की आवाज आई................. अब ये तो तय था मैं बाप बन गया हूँ................ जैसे परीक्षा में पास होने के बाद एक लालसा बनी रहती है कि कौन सी डिविजन मिली है वैसा ही कुछ यहाँ भी हो रहा था............. लड़का या लड़की?................. कुछ क्षण बाद नर्से बहार आई और बोली, "मिठाई मंगाओ, बेटा हुआ है" ..................... और अनु??????? मेरे मुंह से निकला............. नर्स बोली पेसंट भी ठीक है दोनों स्वस्थ हैं..... मैंने ईएश्वर को धन्यवाद किया और फिर शर्म से इधर उधर देकने लगा............. ईजा ने मुझे बधाई दी, फिर दर्शन ,आंटी और बाकी लोगों ने भी............... ईजा ने मुझसे फोन करके सबको बताने के लिए कहा, लेकिन मैं अनु का इंतज़ार करता रहा............... थोड़ी देर में एक नर्स बच्चे को गोद में लिए हमारे पास आई और मैंने बब्बा को पहली बार देखा......... उसकी गोल गोल प्यारी आँखों ने मेरी पूरी दुनिया ही बदल दी।उसको प्यार करके मैंने अनु को देखा, वह अर्ध चेतनावस्था में थी मैंने उसके माथे में चूमा और फिर बाहर फ़ोन करने के लिए चला गया। चूँकि उस वक़्त मोबाइल फ़ोन का चलन शुरू ही हुआ था तो उसका इस्तेमाल बहुत महंगा पड़ता था......... मेरे पास तब मोबाइल फोन नहीं था। इसलिए मैं एसटीडी में गया और पहला फ़ोन घर बाबूजी को किया........... शरमाते हुए मैंने कहा, वो ऑपरेशन हो गया है और वो ...... बे ......ला.... ला........ बेटा हुआ है............... बाबूजी काफी खुश हुए फिर दीदी ने कहा बधाई तू पापा बन गया है............... मैं उस से पहले कभी बाप नहीं बना था न इसलिए शर्म आ रही थी.............. फिर मैंने भाई को बताया........ फिर बारी आई विक्की कि और गिरीश की.................. उसके बाद फिर बाकि लोग...........
अब बारी आई नाम की तो सब परेशां................... क्यूंकि हमने तो सारे नाम लड़कियों के सोचे थे.......... तब में "गिलानी गिफ्ट्स'" से एक नामों की किताब लेकर आया.............. उसमे कई नाम थे, कुछ साधारण कुछ असाधारण, कुछ छोटे कुछ बड़े कुछ नए कुछ पुराने................ लेकिन मेरे को सबसे अच्छा "एकलव्य" ही लगा और वो सब को पसंद आया.....................
कुछ ही क्षणों में एकलव्य १० वर्ष का हो जायेगा................ मैं प्यार से उसे बब्बा कह कर बुलाता हूँ............. आज "एकलव्य" के दसवे जन्मदिन पर मैं ईएश्वर से प्रार्थना करता हूँ, "हे ईएश्वर एकलव्य को आशीर्वाद दें कि वो सब का सम्मान करे, दयालु बने, स्वस्थ रहे, सभी को खुश रखे , बड़ा इंसान बने (दिल से), म्रदुभाशी हो और हमेशा सच बोले"....................
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Lovely to read about the feelings that surrounded you both on Eklavya's birth.May Maharaj bless him, and may your wishes for him ring true.Happy Birthday,Eklavya
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