Thursday, September 18, 2014

शेखर अपने कमरे में अकेले बैठा कभी कुछ लिखता और फिर पन्ना फाड़ उसकी बॉल बना फर्श पर फेंक देता । उसकी आँखों में किसी आने वाले बवण्डर की परछाई साफ़ नजर आ रही थी।  लेकिन उस परछाई को देखने वाला वहां कोई न था। था तो सिर्फ उसका अकेलापन और हाँ, दीवार पर लटका वो फ्रेम जिसको देख शेखर की ऑंखें बार बार भर आती थीं। क्या था उस फ्रेम में? ?       एक खुशियों से भरा परिवार.......  उसकी पत्नी और दो प्यारी सी जुड़वाँ बेटियाँ जिनमें शेखर की जान बस्ती थी। आज भी जब किसी परिवार में लड़की का जन्म होता है तो अक्सर वहां की खुशियों में कुछ कमी सी महसूस की जा सकती है लेकिन शेखर उन चंद  लोगों में से था जो लकड़ा या लकड़ी में कोई अंतर नहीं समझते। तभी तो अपनी बेटियों के जन्म का जश्न "सपना" में कई दिनों तक मनाया । "सपना"  शेखर और उसकी पत्नी निशि के सपनो के घर का नाम था जिसकी दीवारें शेखर को आज  ऐसे देख रही थीं मनो वो उससे उसकी परेशानी का सबब जानना चाह रही हों। हो भी क्यों न, आज तक शेखर की परछाई ने भी उससे इतना दुखी और टूटा हुआ नहीं देखा था। जिस घर में शेखर के ठहाके गूंजा करते थे आज वहां एक अजीब सा उन्माद छाया हुआ था।
तभी  मोबाइल की घंटी बजी........ शेखर ने फ़ोन की तरफ देखा और फिर उससे आँखें चुरा लीं। कुछ पल बीते ही थे की घंटी फिर घंगनाने लगी और ना चाहते हुए भी शेखर ने फ़ोन उठा लिया, धीमी आवाज में शेखर बोला, "हेलो". "अबे फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा है" दूसरी ओर से आवाज आई। शेखर बोला, "नहीं बस घंटी सुनाई नहीं दी अमित, कैसा है "? " अबे मैं तो ठीक हूँ पर तू बता इतना दुखी क्यों साउंड कर रहा है". " नहीं यार मैं तो बिलकुल नार्मल हूँ" . "साले  अब दोस्तों से छिपायेगा" अमित बोला। शायद हम भूल कर जातें हैं की दोस्तों से कुछ छुपता नहीं हैं, वो तो सूंघ लेते हैं और अमित ने भी सूंघ लिया था की शेखर परेशान है। लेकिन शेखर ने अपनी परेशनियों पर पर्दा डालते हुए अमित को कन्विंस कर दिया की वो परेशान नहीं है।
अमित का फ़ोन कटते ही शेखर फूट फूट कर रोने लगा लेकिन उसके आंसू पोछने वाला वहां कोई न था। कुछ क्ष्रण बीतने के बाद शेखर ने कलम उठाई और लिखना शुरू कर दिया मानो  उसे वो सब याद आ गया हो जो वो लिखना चाह रहा हो।
शेखर ने लिखना शुरू किया, "ख़ुशी मिली मुझे माफ़ कर देना बच्चो मैं दूर  बहुत दूर जा रहा हूँ, शायद आज तुम्हे मेरा तुम से दूर जाना ज्यादा  कष्ट नहीं देगा लेकिन कुछ समय बाद तुम्हे मेरी कमी खलने  लगेगी। मैं जिंदगी से  परेशान हो चुका  हूँ।  तुम्हे और तुम्हारी माँ को छोड़ कर जाना मेरे लिए बहुत कष्टदायी है लेकिन मैं मजबूर हूँ और कोई रास्ता भी नहीं है मेरे बच्चो।  मैं तारा बन तुम्हे हर रोज़ देखा करूँगा बेटा और जब कभी तुम किसी परेशानी में हो तो आसमान में मुझे देख आवाज लगाना, तुम्हारे पापा तुम्हारे पास आ जायेंगे। अपनी मम्मी का ख्याल रखना और माँ को बहुत प्यार  करना क्यूंकि मेरे जाने के बाद तुम्हारी माँ सबसे ज्यादा अकेली हो जाएगी बच्चे।  मैं जानता हूँ मैं गलत कर रहा हूँ लेकिन और कोई रास्ता भी नहीं है। मुझे दुःख है कि मेरा कष्ट मेरे माँ बाप नहीं समझ पायेऔर मैं कभी नहीं चाहूंगा कि तुम्हारी माँ भी ऐसा ही करे। तुम्हारी परेशानियों को तुमसे पहले तुम्हारी आँखों में पड़ ले। तुम दोनों माँ को बहुत प्यार करना और अपने साथ ही सुलाना।  माँ को कहानियां सुनाना और माँ से हमारी कहानियां सुनना कि कैसे हम मिले और कैसे हमारी शादी हुई। हह!! सब कुछ कितना हसीं था लेकिन अब सब ख़त्म होने जा रहा है सब कुछ........
इस बात का दुःख जरूर होगा कि मैं तुम्हारी छोटी छोटी हथेलियों को आखरी बार छू भी नहीं पाया और न ही तुम्हारी माँ को जाने से पहले गले लगा सका" . ……
इतना लिख कर शेखर ने एक सिगरेट जलायी और जोर का कस लिया… ये उसके लिए कुछ नया था क्यूंकि उसने कभी धूम्रपान किया नहीं था।
तभी शेखर ने घर में बने पूजाघर की ऒर देखा और फूट फूट कर रोने लगा, शिकायत करने लगा कि उसका क्या कसूर है जो उसे यह कदम उठाना पड़ रहा है। शेखर की मनोस्तिथि देख लगता था मनो वह मौत  से ज्यादा जीना चाहता है। लेकिन तभी शेखर अपना सबसे प्यारा "सपना" छोड़ पास पड़ी एक शीशी की ओर लपकता है मानो उसने अपने प्राण त्यागने का  प्रण कर लिया हो.……
शेखर ने शीशी खोली और इस से पहले वह उसको अपने गले से नीचे उतारता फिर से उस का फ़ोन घनघनाने लगा। एक आखिरी बार शायद वह फ़ोन उठाना चाहता था और फ़ोन उठाते ही वह फफक फफक कर रोने  लगा, फ़ोन के दूसरी तरफ उसका दिल उससे बात कर रहा था, "पापा कब आ रहे हो आप " तोतलाती आवाज में शेखर की बड़ी बेटी बोली। हालाँकि छोटी और बड़ी बेटी  सिर्फ ४ मिनट का ही अंतर था। ख़ुशी की आवाज सुन शेखर निशब्द हो गया और भर्रायी आवाज में बोला "मिली कहाँ है बेटा मेरी बात कराओ " . तभी मिली बोली "पापा आप नहीं आओगे तो मैं खाना नहीं खाऊँगी, आप जल्दी से आओ"।  अब शेखर के लिए अपनी जान देना और भी मुश्किल हो गया। भरे मन से फिर एक कोशिश की लेकिन तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। बहार देखा तो अमित खड़ा था। शेखर ने तपाक से केवाड़ खोला और अमित के भीतर आने से पहले ही उसे गले से लगा लिया और फूट फूट कर रोने लगा।  अमित बोला, "मैं जानता था कि तू बहुत परेशान है और रहा नहीं गया इसीलिए तेरे से मिलने आ गया" . शेखर बोला , "मैं मरने जा रहा हूँ दोस्त लेकिन  बड़ा मुश्किल है खुद को ख़त्म करना जब तुम्हारे करीब इतने खूबसूरत लोग हों। मैं क्या करूँ अमित?"
अमित शेखर को दरवाजे तक ले जाता है और बहार शेखर की ज़िन्दगी उसका इंतज़ार कर रही होती हैं निशि , ख़ुशी और खिली। सभी की ऑंखें नम हो जाती  हैं.… शेखर और निशि एक दूसरे को गले लगा रोने लगते हैं, कुछ क्षण सब कुछ थम सा जाता है और फिर निशि अमित को , जिसे वो हमेशा गलत समझती रही, गले लगा कर माफ़ी मांगती है और अपनी कृतज्ञता जाहिर करती है।
शेखर  बच्चियों को गोद  में उठा नम आँखों से उन्हें अपने सीने से लगा लेता है मानो अनकहे शब्दों से उनसे माफ़ी मांग रहा हो और कहना चाह रहा हो कि वो कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था।
आज शेखर एक स्कूल चलाता है और अपने बच्चों को जिंदगी की खूबसूरती का पाठ पढ़ाता है और हाँ अपना वो उदाहरण देना नहीं भूलता कि जिंदगी के आगे भी एक ज़िन्दगी है…

Monday, August 4, 2014

मेरा दिल.....

तुम आई तो जीवन मिल गया 
तुम मुस्कुराई तो दिल खिल गया 
तुमने देखा तो धड़कन  बढ़ गई 
तुमने छुआ तो स्वर्ग मिल गया 
तुम न होती तो जीवन अधूरा था 
तुम हो तो सब कुछ है…… 



Thursday, July 31, 2014

जीने का जी करता है....

आज फिर उड़ने का जी करता है
आज फिर मुस्कुराने का जी करता है
आज फिर से वो लम्हे याद करने का जी करता है
आज बारिश में भीग जाने का जी करता है
आज कागज की कश्ती बनाने का जी करता है
आज चवन्नी की ढैया उड़ाने का जी करता है
आज चोर पुलिस और डॉक्टर डॉक्टर खेलने का जी करता है
आज फिर बगिया में आम गिराने का जी करता है
आज फिर से बच्चा बन जाने का जी करता है
हाँ, आज फिर से जीने का जी करता है....