Tuesday, November 19, 2013

"टीनएज"

हमारी जिंदगी का  सबसे महत्वपूर्ण समय होता है टीनएज।  ये ऐसा समय होता है जब हमारे भीतर तमाम शारीरिक एवं मानसिक  बदलाव आते हैं।  बलवस्था और युवावस्था के बीच का यही  समय होता है जब हम भविष्य के निर्माण कि नीव रखते हैं। अगर नीव थोड़ी सी भी कमजोर पड़ी तो सारा जीवन लक्ष्यहीन हो जाता है।  सभी माँ बाप बच्चों की इस जीवनकाल के  दौरान डरे सहमे रहते हैं। उन्हें दिन रात उनके भविष्य चिंतन का डर लगा रहता है।
यही समय होता है जब ये बच्चे अपना घर छोड़ अपने अपने शहरों से दूर अपने भविष्य निर्माण के लिए निकल पड़ते हैं। कुछ तो अपना जीवन लक्ष्य प्राप्त करके ही लौटते हैं और कुछ दुर्भाग्यवस कामयाबी के मुहाने तक पहुँच कर लौट आते हैं। और उन्हीं बच्चों में से कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपना लक्ष्य शहरों कि गलियों में कहीं खो आते हैं। उन्हें शहरों की  चकाचौंध अँधा कर देती है। वो अपने सपनो की उड़ान तो भरते हैं लेकिन  हवा का एक  तेज झोंका उन्हें उनके सपनो सहित कहीं दूर अंधकार में धकेल देता है। 
कारण एक नहीं अनेक होते हैं, कभी माँ बाप जिम्मेदार होते हैं तो कभी बच्चे और कभी हालात।  लेकिन अकसर हम हालातों को कोसते हैं जो ठीक नहीं क्यूंकि हालातों को हमारी मानसिकता ही उपजाति है। 
बालकों में नशा किसी संक्रामक रोग की तरह फ़ैल रहा है।  पब, क्लब और  दोस्तों के साथ पार्टियां करना एक स्टाइल बन चुका है और यही वो  जगह हैं जो बच्चों के जीवन में नशे का ग्रहण लगा रही हैं। बच्चे देर से घर लौटते हैं लेकिन कुछ माँ बाप ऐसे होते हैं जो उनसे ये पूछने कि हिम्मत नहीं कर पाते की वो इतनी  रात कहाँ से आ रहे हैं। वो बच्चे जो ज्यादा पैसा खर्च नहीं कर पा रहे वो आसानी से नशे कि गोलियां, कफ सिरप, थिनर, और ना जाने क्या क्या चीजों का इस्तेमाल कर खुद को नशे के दलदल में कैद करते जा रहे हैं। कई बार इन नशीले पदार्थों के सेवन के लिए धन न होने कि दशा में कोई  भी गैर कानूनी कृत्य करने से भी नहीं चूकते। 
बालिकाओं में भी नशा हावी होता जा रहा है, और नशा नशीले पदार्थों का ही नहीं बल्कि मेहेंगे शौक पूरे करने का भी। और ये ऐसा नशा है जिसे पूरा करने के लिए ये किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने से भी नहीं चूकतीं। 
इन बच्चों को जरूरत है प्यार की सम्मान की और हम सब की  देखरेख की। हमें जरूरत है इन्हे समझने की और समझने की। ऐसा नहीं है कि ये सब रोका नहीं जा सकता, ग़र मिलके कोशिश करें तो शायद जरूर। इन बच्चों कि जिंदगियों का हम आयना हैं, जो कुछ ये हममें देखेंगे खुद को भी वैसा ही पाएंगे। 
आज फिर दिल से कुछ निकल बैठा है.………

Saturday, November 16, 2013

भगवन या फिर इंसान?.....

मैं सचिन का न तो बहुत बड़ा प्रसंशक हूँ न ही कोई आलोचक।  लेकिन आज सचिन को भारत रत्न दिए जाने  से बहुत ही आहत हूँ।  इन्सानी  भगवान  को एक आम इंसान से ऊपर उठा दिया आम  इंसानो ने…  पिछले लगभग एक महीने से किसी भी दैनिक पत्र में सचिन के अलावा और किसी खिलाडी की  कोई और खबर नहीं थी।  और तो और रोहित शर्मा की अपने पदार्पण टेस्ट मैच के  दोनों  शतक भी फीके कर दिए मीडिया ने।  और दूसरा शतक तो ऐसे समय में लगाया  कि एकदम नामुमकिन सा दिख रहा था।
खैर, सचिन बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं और ताउम्र रहेंगे लेकिन क्या  उन्हें भगवान  की  संज्ञा देना ठीक रहेगा?
क्या ये सब मीडिया का कमाल है ? इस सब के पीछे पीछे क्या एक   सिस्टम काम नहीं करता है? वो एक महान खिलाड़ी  हैं लेकिन महानतम नहीं।  क्या सर डॉन ब्रैडमैन किसी मायने में सचिन से कम हैं? क्या राहुल द्रविड़ उनके मुकाबले कहीं खड़े नहीं होते हैं? क्या आनंद विस्वनाथन और मिल्खा साब भी उनके मुकाबले कुछ नहीं ?
और अंत में मैं उस शख्श का जिक्र करना चाहूंगा जिसने भारत को ओलिंपिक खेलों में एक दो नहीं बल्कि तीन तीन स्वर्ण पदक दिलवाए।  जी हाँ नाम लेना चाहता हूँ ध्यान चंद साहब का।  तीन बार खेलों के महाकुंभ में ३३ गोल करने वाले खिलाडी को हम सब भूल गए। हॉकी के जादूगर, जिनके जन्मदिवस  पर भारत देश में २९ अगस्त को प्रति वर्ष खेल दिवस मनाया जाता है आज उन्ही को भारत रत्न से वंचित किया गया। मेरी समझ में ये उस महान खिलाडी का बहुत बड़ा अपमान है। ये क्रिकेट का कमाल है ये बी सी सी आई का कामल है ये राजनीति का कमाल है और ये मीडिया का कमाल है।  लेकिन इस सब के पीछे ये सचिन के करिश्मे का कमाल है।  उनकी मेहनत और हुनर का कमाल है।
आज की तारीख में मीडिया कुछ भी कर सकता है, जीरो या फिर  हीरो……




Wednesday, May 1, 2013

"वो कौन है"



वो जो कहता है दोस्त मुझे
कभी अपना ना था, और
ये दोस्त होकर भी
पराया क्यूँ लगता मुझे ........

ये तो  नजरें मिलाकर  भी
फेर लेता है ऑंखें, और
वो जो  ऑंखें ही नहीं मिलाता
नजरों में बस गया है।

दिल धड़कता तो है
न जाने ये धड़कन है किसकी 
उसकी, जिसका दिल ही नहीं
या वो जो  मेरा नहीं ......

मुश्किल है ये बता पाना
कौन अपना कौन पराया
वो जो  नजरें मिलाता है, या
फिर वो जो नजरें छिपाए बैठा है।