Saturday, November 16, 2013

भगवन या फिर इंसान?.....

मैं सचिन का न तो बहुत बड़ा प्रसंशक हूँ न ही कोई आलोचक।  लेकिन आज सचिन को भारत रत्न दिए जाने  से बहुत ही आहत हूँ।  इन्सानी  भगवान  को एक आम इंसान से ऊपर उठा दिया आम  इंसानो ने…  पिछले लगभग एक महीने से किसी भी दैनिक पत्र में सचिन के अलावा और किसी खिलाडी की  कोई और खबर नहीं थी।  और तो और रोहित शर्मा की अपने पदार्पण टेस्ट मैच के  दोनों  शतक भी फीके कर दिए मीडिया ने।  और दूसरा शतक तो ऐसे समय में लगाया  कि एकदम नामुमकिन सा दिख रहा था।
खैर, सचिन बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं और ताउम्र रहेंगे लेकिन क्या  उन्हें भगवान  की  संज्ञा देना ठीक रहेगा?
क्या ये सब मीडिया का कमाल है ? इस सब के पीछे पीछे क्या एक   सिस्टम काम नहीं करता है? वो एक महान खिलाड़ी  हैं लेकिन महानतम नहीं।  क्या सर डॉन ब्रैडमैन किसी मायने में सचिन से कम हैं? क्या राहुल द्रविड़ उनके मुकाबले कहीं खड़े नहीं होते हैं? क्या आनंद विस्वनाथन और मिल्खा साब भी उनके मुकाबले कुछ नहीं ?
और अंत में मैं उस शख्श का जिक्र करना चाहूंगा जिसने भारत को ओलिंपिक खेलों में एक दो नहीं बल्कि तीन तीन स्वर्ण पदक दिलवाए।  जी हाँ नाम लेना चाहता हूँ ध्यान चंद साहब का।  तीन बार खेलों के महाकुंभ में ३३ गोल करने वाले खिलाडी को हम सब भूल गए। हॉकी के जादूगर, जिनके जन्मदिवस  पर भारत देश में २९ अगस्त को प्रति वर्ष खेल दिवस मनाया जाता है आज उन्ही को भारत रत्न से वंचित किया गया। मेरी समझ में ये उस महान खिलाडी का बहुत बड़ा अपमान है। ये क्रिकेट का कमाल है ये बी सी सी आई का कामल है ये राजनीति का कमाल है और ये मीडिया का कमाल है।  लेकिन इस सब के पीछे ये सचिन के करिश्मे का कमाल है।  उनकी मेहनत और हुनर का कमाल है।
आज की तारीख में मीडिया कुछ भी कर सकता है, जीरो या फिर  हीरो……




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